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मतिधर नहिं मारै मरक, गम खावै गम्भीर। सन्तां ! रल-मिल कर रहो, परख परायी पीर ॥३३॥
सुधारणी सलटावणी, घर मै घर की बात। सन्तां! बारै बोलणो, सदा संघ रै साथ ॥३४॥
चुगली खावै चेहरो, चलगत कहै चलाक । सन्तां ! रोकी कद रहै, तरकीबां री ताक ॥३५॥
मोटां सागै मसखरी, छोटां सागै छोल। जद कद हद रासो करै, सन्तां! आ रिगटोल ॥३६॥
होणहार रै हाथ है, जस अपजस रो जोग । सन्तां ! रोलो घाल दै, लारै लाग्यां लोग ॥३७॥
काम-काज रै कोड मै, झगड़ो झाले झोड़। सोच समझ सन्तां ! मुड़ो, मनमुटाव री मोड़ ॥३८॥
जाणी मुसकिल जलमभर, टाबरपण री टेव । सन्तां ! दाग न लागज्या, सजग रहो स्वयमेव ॥३६॥
आछा नै ओपै नहीं, ठट्ठा ठोल मखोल। सन्तां ! बात बिगाड़ दे, ओछा अणघड़ टोल ॥४०॥
धसक पग निचलीधरा, डरसी बो डरपोक। सन्तां ! नेडो नहिं रहै, सावधान रै शोक ॥४१॥
पलमा खोलै पारका, ढकण आपरी ढीम। सन्तां ! रोग मिटा सकै ? हजरत नीम-हकीम ॥४२॥
तानो सहै न ताजणो, तेजी तजै न ताव । सन्तां ! रेकारो सुण्यां, उबल जाय उमराव ॥४३।।
थानां लग न थींगला, थलवट रो के थोभ । सन्तां ! सत्य चुभै नहीं, चोभ लोभ रै खोभ |॥४४॥
६४ आसीस
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