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चहरै चलकै चतुर र, आचरणां री आब । सन्तां ! नहिं रहण सके, रगड्यां क्रीम रबाब ।।२।।
दूजा ₹ शिर द्यो मती, इज्जत रो इल्जाम। सन्तां ! गलै न घालणी, बलबलती बेकाम ॥२॥
मदवो बण मरदै मुलक, ईख चाब कर ईम । सन्तां ! विष उगले विसम, जीम'र मीठो जीम ॥२३॥
इज्जत स्यूं इज्जत बधै, उपकृति स्यूं उपकार। सन्तां ! रंजिस स्यूं रंजिस, प्यार बधावै प्यार ॥२४॥
सन्त सादगी स्यूं रहै, उंडी बात विचार । सन्तां! रंगत रोल दै, आ फिट-फाट अबार ॥२५॥
दूजी तरफ द्विरूपता, एकीपण इक ओर। सन्तां ! रीती ही रहै, अपणायत अंगोर ॥२६॥
रहणो उज्जल धोलियो, ऐयाशी रा ऐन । सन्तां! नै शोभे नहीं, नित री फेना-फेन ॥२७॥
एक तरफ, ओझे, धुजै, हाथ दूसरी ओर । सन्तां ! कुण टिकसी कहो, इसी बेरुखी ठोर ॥२८॥
अपणां स्यूं रहै अणमणो, हमजोल्यां स्यूं हेत। सन्तां ! अणबण रो पड्यो, सीधो सो संकेत ॥२६॥
संयम-रुचि जिण रै जची, रची संघ शुचि संग। सन्तां ! जीवन जंग मै, ऊंच रखै उचरंग ॥३०॥
घुट-घुट घोट घुनरो, कहै न मन री खोल । सन्तां ! छानो नहि रहै, गट-पट गट्टा गोल ॥३॥
जाण रेत रा रमतियां, खमसी खिमता खाण। सन्तां! रमकर ऊठतां, टाबर देत भिसाण ॥३२॥
संत-चेतावणी ६३
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