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६२ आसीस
कसतां ही किचरो हुवै, 'चम्पक' कांसी, कांच । सन्तां ! रजमो राखज्यो, नहीं सांच नै आंच ॥६॥
कहण में कुछ और ही, करणो चम्पक और । राजनीति री रीत आ, सन्तां ! करल्यो गौर ॥१०॥
मिनख मतै मोती मिणै नैण-निवाणां नीर । रुलपट री सन्तां ! किसी, 'चम्पक' लेण - लकीर ॥११॥
साथी-संगल्या कद सहै, चेला चांटी चोट । 'चम्पक' रलज्या गेडिया, सन्तां ! मोटा मोट ।। १२ ।।
सिर पोसी के बो सुई, दिन में दीस न बीम । सन्ता ! सार न कहण मै, 'चम्पक' कड़वो नीम ॥ १३ ॥
कमसल तजै कुबाण कद, 'चम्पक' कढ़े न काण । सन्तां ! रेत रलावणो, श्रम नै व्यर्थ सुजाण ॥ १४ ॥
मृदुता स्यूं 'चम्पक' मिनख, करदै काम सहर्ष । सन्तां ! रोल्यां रेत मै, आंधो आदर्श ।।१५।।
'चम्पक' करल्यो जापतो, बगत बड़ो विकराल । सन्तां ! रोक्यो नहि रुके, पाणी फूंटा पाल ।। १६ ।।
मां मढ़ी मुंजेवड़ी, कुण 'चम्पक' सन्तां ! नहि छुटे,
थे-म्हे के तेन । गूंथीज्योड़ा जेन ॥ १७॥
सन्तां ! रखपख डसरूंगस, रो जीनां री राड़ । राजनीति रो रोल ओ, 'चम्पक' पटक पछाड़ || १८ ||
झूठा झूरै झूरणां, 'चम्पक' चिण अवरोध । सन्तां ! पोते ही पड़े, पापी खाड़ो खोद ॥ १६ ॥
व्याज वृद्धि विद्या विविध, असल रकम आचार । सन्तां ! देणो फालतू, बिगड्यै तिवण बघार ॥२०॥
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