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________________ होणो नहीं हिमायती, दुर्गण बीच दलाल । 'चम्पक' सन्त स्वभाव रो, सन्तां ! राखो ख्याल ॥१॥ चाली 'चम्पक' चालणी, छद्म बतावण छेद । सन्त स्वात्मदर्शी सदा, भेदी भांपै भेद ॥२॥ धिगाणिया 'चम्पक' धस, धींगामस्ती धींग । पण सन्ता! मूंगा पड़े, घणा बध्योडा सींग ॥३॥ अड़ो न 'चम्पक' द्यो अभय, दयापात्र है दीन ! सन्तां! समता धर्म है, मत गूंदो गमगीन ॥४॥ सन्तां जाय स्वभाव कद, 'चम्पक' साधे सूध । रला मीगण्यां रोज ही, बकरी देवै दूध ॥५॥ उद्यम मै 'चम्पक' उकत, होणो नहीं हरान । रुत आया सन्तां ! सरस, फल देवै फलवान ॥६॥ मोटा ही माफी करै, नमसी 'चम्पक' नरम । सन्तां ! राख्यां सरैला, धीरप, धीरज, धरम ॥७॥ कीड़ी पर 'चम्पक' कटक, कमजोरां पर खार। सन्तां ! मर्योड़ां नै अबै, थे के करस्यो मार ॥८॥ संत-चेतावणी ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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