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शान्त साधना साधणी, शरद चन्द्र-सी श्वेत । सन्तां ! शोभा संघ री, हिल-मिल राख्यां हेत ॥५७।।
भिन्न भिन्न नय भेद में, षट् दर्शन षट् कोण । सन्तां ! स्याद्वादी गुणी, गुण नै कर न गोण ॥५८।।
सेवा सुमिरण सादगी, साम्य योग स्वाध्याय । सन्तां ! रच्या-पच्या रहो, संयम स्वान्त सुखाय ॥५६।।
करयां दलाली कोल री, होसी काला हाथ। सन्तां रहणो नहिं कदे, संज्ञा चूकां साथ ॥६०॥
मित बोलो वक्तव्य में, क्षमा करो क्षतव्य । सन्तां ! रीत-रिवाज स्यूं, कार्य करो कर्त्तव्य ॥६१॥
ब्रह्मचर्य रो वदन मै, त्राटक को सो तेज । सन्तां ! रोब रबाब है, आंख्यां रो आदेज ॥६२।।
जाणो, जोता लागग्या, (जद) ज्ञानी करै गुमान । सन्तां ! रती बधावणी, विनयी बण विद्वान ॥६३॥
६६ आसीस
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