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________________ फहम बिना री बात, चतुरां ! सुण चमको मती। हियो राखज्यो हाथ, समय-समय पर श्रावकां!।८२॥ आगम रो उपकर्म, गुरु गम स्यूं गहरो हुवै। मुश्किल मिलणो मर्म, स्वयं पढ्यां स्यूं श्रावकां !८३।। मनमत्ते मतिमान, बणणो जाणे है बहुत । अवरोध उत्थान, स्वयं स्वयं रो श्रावकां!८४॥ मोटा महिमावान, नमै सदा नल-नीर ज्यं । ओछां रै अभिमान, सटकै आवै श्रावकां!।८।। नाहक निन्दक लोक, कर्मठोक निन्दा कर। जाण बणकर जोक, सार चूसलै श्रावकां!।८६।। निमल करो नित नेम, सामायक सज्झाय वर । सेवा टेमोटेम, संत-सत्यां री श्रावकां !1८७॥ बे-मतलब कर बेहम, बात-बात मै बीचरै। बाजै बो बे-फेहम, शूल सरीखो श्रावका !1८८।। बिना रीत री बात, देखो तो झट टोकयो। पकड़ो मत पखपात, स्याणां सोतां! श्रावका !८६।। देखो जो कोइ दोष, कहो जग्यांसर कहण री। मन नै व्यर्थ मसोस, सहन करो मत श्रावका !18॥ निकमा ले ले नाम, रोला करणा रोज रा। कोनी थारां काम, सजग रहीज्यो श्रावका !६१॥ रख-पख झूठी राख, गाला गोलो गुरु कन्है। सटकै खोवै साख, शोभा सगली श्रावका १६२॥ बोलै कड़वा, बोल, जहर घोलकर जीभ मै। टांकी लगै न टोल, स्नेह टूटज्या श्रावकां !।६३।। ५६ आसीस . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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