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________________ ५४ आसीस जंच नहीं जो बात, आचारज री श्रद्धा भगती साथ, सुदृढ़ राखो कष्ट पड्यां कमजोर, पाछा देव पांवड़ा । साहमा मंड्यां सजोर, समर जीतस्यो श्रावकां ! १५६ ॥ आसतां । श्रावकां ! | ५८ ॥ समकित रा सुविशेष, जतन जापता जो करै । किंचित रहै न क्लेश, सरसै जीवन श्रावकां ! ॥ ६० ॥ चौबीसी चित चाव, अमल बना आराधना । सहज रहै सद्भाव, सज्झाई ₹ श्रावकां ! ॥ ६१ ॥ ऊंडो दे उपयोग, परमेष्ठी सहज बढ़े शुभ योग, स्मरण कर्यां पंचक प्रवर | स्यूं श्रावकां ! १६२ ॥ बरतो बगत बिलोक, सीमा में रहकर सदा । लारै होसी लोक, समय पिछाण्यां श्रावकां ||६३ || आचारज री आण, प्राणाधिक पहचाणज्यो । तर्क फर्क युत तांण, श्रेष्ठ नहीं है श्रावकां ! | ६४ || 1 नवकरवाली नित्य चवदह नियम चितारणा । करो सदा रो कृत्य, शांत भाव स्यूं श्रावकां ! | ६५॥ गुरु- बचनां पर गोर, गहरा गुण बधसी घणां । कालेजां री कोर, संघ संघपति श्रावकां ! | ६६ ॥ कर मन पर कंट्रोल, रूप देख रीझो मती । आछी सीख अमोल, सत्पुरुषां री श्रावकां ! ॥ ६७ ॥ अवसर नै अवलोक, वरतै बोही विज्ञ है । लेक्चर झाड्यां लोक, सहमा मंडसी श्रावकां ! ॥ ६८ ॥ Jain Education International - मतलब बिखबाद, बढ्यां बणै विसमी स्थिती । आत्मा मै आह्लाद, सदा बढ़ावो श्रावकां ! | ६६ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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