SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ होवै काम हरेक, सहज विवेकी रा सदा। विद्या बिना विवेक, शोभै कोनी श्रावकां!।४६।। बधै सहज बहुमान, रलमिल सगलां स्यूं रह्यां। बाजै जग बलवान, संगठन स्यूं श्रावका !।४७।। विनय सहित व्यवहार, खिण मै जग नै खींच ले। प्रगटै सहज्यां प्यार, सलिल बण्यां स्यूं श्रावका !!४८।। वदनीति, अति बात, खुद रो कर दै खातमो। हियो राखज्यो हाथ, सुख पाओला श्रावका !।४६॥ श्रावकपण रो सार, आचार्यां री आसता। विमल विनय व्यवहार, सहनशीलता श्रावका !५०।। सन्त-सत्यां रै साथ, हंसी-मसखरी हरकता। कोकथ करो न काथ, शरम राखज्यो श्रावकां!।५।। सदा करो सम्मान, सत्य शील सन्तोष रो। सहज्यां बढ़सी शान, सारै जग मै श्रावकां!।५२।। कोई स्यूं भी काम, करडो बोल्यां नहिं कढ़े। पास्यो शुभ परिणाम, सावल बोल्यां श्रावका !!५३॥ ओलखज्यो आचार, गण-मर्यादा गौर स्यूं। विद्या रो विस्तार, संजम लारै श्रावकां!।५४॥ बगत-बगत रा बोल, नया-नया जो नीसर । तर्क तराजू सोल, मोचो समझो श्रावका !।५५।। आपसरी री ऐंठ, सुलझै समझोतो कर्यो। पाछी जमज्या पेठ, संवली सोच्यां श्रावका !!५६।। अणबणती आसान, सहज नहीं है सुलझणी। 'मैं' रो मुधाभिमान, स्याणप खोवै श्रावका !!५७।। श्रावक-शतक ५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy