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दलबन्दी-दीवार, काम नहीं देवै करण । पेहली चहिजै प्यार, सब कामां मै श्रावका !।३४॥
ओरां नै उपदेश, देणे मै के दक्षता। बढ़ा विवेक विशेष, सुधरो थे खुद श्रावकां!।३५॥
अरे! अणूता आल, दूजां पर देवो मती। होवै बुरो हवाल, सुजस न खोओ श्रावका !॥३६॥
राखो शासण-रीत, परम प्रीत गण-पूज्य स्यूं। बाजोला सुविनीत, शोभा बढ़सी श्रावकां!।३७।।
थे मत खोओ थाप, बिना विचारयां बोल के। चोखी है चुपचाप, सोच्या पेहली श्रावकां!।३८॥
चतुर और चालाक, अन्तर दोन्यां मै अधिक । छोड़ो मन री छाक, सरल बणो थे श्रावका !!३६।।
पूरब पुण्य प्रताप, मिली देह आ मिनख री। परहा परिहर पाप, श्रमण-भूत बण श्रावका !!४०॥
आतम-ज्ञान अनन्त, तर्क-तुला स्यूं नहिं तुलै । तहमेवं ही तंत, सदा सिरे है श्रावका !।४।।
अणुव्रत-व्रत स्यूं ओप, आछी जीवन री अहो। आडम्बर आटोप, सगला छोड़ो श्रावका !!४२॥
अणुव्रत री ले ओट, खोट खराबी मति करो। पापां री आ पोट, स्यान बिगाड़े श्रावका !!४३॥
कूड कपट रो कोट, खतरै स्यूं खाली नहीं। गहरा ऊठ गोट, सुई न सूझे श्रावका !!४४॥
चाल्यां खोटी चाल, पग-पग पिछताणो पड़े। पाणी पेहली पाल, सोहरी बंधणी श्रावकां!।४५।।
५२ आसीस
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