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संत-सत्यां रै संग, बरतो मत विपरीतता। परिहर प्रेम प्रसंग, शुद्ध रहीज्यो श्रावका !।२२॥
न्यातीलां स्यूं नेह, अणहंतो आछो नहीं। छिन मैं देवै छेह, स्वारथ छुट्यां श्रावकां!।२३।।
पकड़ एक री पक्ष, न्याय निवाण नां धरो। पूजास्यो प्रत्यक्ष, समान समझ्या श्रावका !।२४।।
साची नेक सलाह, द्यो मत दिल देख्यां बिना। बण कर बे-परवाह, साख न खोओ श्रावका !॥२५॥
उद्यम आगेवाण, जैनागम मै जिन कह्यो। तकदीरां रै तांण, समय न खोओ श्रावका !।२६।।
अन्तर आंख उघाड, जोवो पथ जिनराज रो। बांधो जीवन-बाड, सदा सुरक्षित श्रावकां!।२७॥
तप तीखी तलवार, करम कटक स्यूं जुध करण । भरण सुकृत भंडार, सगती साहमो श्रावका !।२८॥
सझो सुरंगो शील, बधसी घणी विशेषता। झूल्यां संयम झील, शिव-सुख मिलसी श्रावकां !।२६॥
मिनखपणे रो मान, मानव बण खोवो मती। इज्जत और ईमान, स्वयं बचाओ श्रावकां!।३०॥
भजल्यो श्री भगवान, भोर सांझ भल भाव स्यूं। गेहरो-गेहरो ज्ञान, सझै नहीं जो श्रावकां !।३१॥
नहीं चहीजै नाम, इसा किता है आदमी। कर्यां करण रो काम, स्वतः नाम है श्रावकां!।३२।।
फाड़ा-तोड़ी-फूट, मन रो जो मैलापणो। लेवै निज गुण लूंट, समझो स्याणां श्रावकां!।३३।।
श्रावक-शतक ५१
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