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निर्मल राखो नीत, परमप्रीत पय-जल जिसी। जग में होसी जीत, सच्चाई स्यूं श्रावका !।१०॥
ध्याओ धर्म-ध्यान, पाप-ध्यान नै परिहरो। मिलसी शान्ति महान, सहज भाव स्यूं श्रावका !।११॥
बणज्यो विज्ञ विनीत, चुणज्यो चोखा गुण चतुर । निकलै नव नवनीत, शुभ चिन्तन स्यूं श्रावका !॥१२॥
दूषण मुनि मै देख, चटकै मत थे चिमकज्यो। समझ सीख सुविवेक, स्वामी जी रा श्रावकां!।१३।।
बिना विचाऱ्यां बात, किण स्यूं ही करणी नहीं। है अपण ही हाथ, शोभा लेणी श्रावका !।१४॥
बधज्या घणो बिगाड़, बे-मतलब री बात स्यूं। तिल बणज्यावै ताड़, साम्प्रत देखो श्रावकां!।१५।।
रोजीनां री राड़, आछां नै ओपै नहीं। बोहलो करै बिगाड़, सोचो समझो श्रावका !।१६॥
दिल राखो दरियाव, झटक थे मत झलकज्यो। पड़सी पूर्ण प्रभाव, सगलां ऊपर श्रावका !।१७।।
धन स्यूं नावै धाप, सागर नै ज्यूं सलिल स्यूं। तृष्णा रो आताप, शान्त करो थे श्रावकां!।१८॥
साझो शासण-सेव, अटल राखज्यो आसता। अलगो कर अहमेव, सफल बणो थे श्रावकां !॥१९॥
बारह-व्रत वर रीत, धारो कर कर धारणां। पूरी पालो प्रीत, संयम सागै श्रावकां ॥२०॥
संत-सत्यां रै साथ, धारो धार्मिक धारणा। बिना जरूरत बात, शोभै कोनी श्रावकां !।२१।।
५० आसीस
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