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सागर ! सावधान !
अपणे मुद्दे मै रही, सावचेत खुशहाल । 'चम्पक' सागर ! चमकसी, आज नहीं तो काल ॥१॥
अकलदार ने आंख रो, घणो इशारो एक । अविवेकी नै लाख भी, सागर ! कहकर देख ॥२॥
आग्रह मैं आया करै, अहंकार, आवेश । झूठ, आंट, झंझट, कपट, सागर ! कटुता, क्लेश ॥३॥
आंख देखकर आंकलै, जो भीतरला भाव । 'चम्पक' चतुर चकोर तूं, सागर ! छोड़ विभाव ॥४॥ अन्त मती वैसी गती, जैसी गति मति होय । मति नै बदलण दै मती, सागर ! सिन्धु विलोय ॥५॥
पञ्चक बत्तीसी ४५
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