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३२ आशीष
सुबह-सुबह स्वाध्याय है, सागर ! साचो स्नान । उडा ऊंघ, आलस उभय, स्थिर चित बणी सुजान ॥१॥
निश्चित ही मिलसी रतन, पाणी माहि मजीक । धीरज धर, कर साधना, सागर ! सिद्धि नजीक ।।२।।
सागर ! बड़ के वृक्ष ज्यू, तूं करज्ये विस्तार। हो-भर्यो छायां घणी, सगलां नै सुखकार ।।३।।
सुखे-सुखे संयम निभा, सागर! तूं सोत्साह । श्याम खोर बण संघ रो, 'चम्पक' री चित-चाह ॥४॥
राजा देव रीझ कर, बड़ी-बड़ी बक्सीस । पर सागर ! चम्पक कन्है (है) आ हार्दिक आशीष ॥५॥
४६ आसीस
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