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तूं साधक है
तन-बल तो काची तर्क, मन-बल रह मजबूत । सागर ! तिरै समुद्र मैं, साधक, दूत, सपूत ॥ १ ॥
जल मैं ज्यूं नौका तिरै, त्यूं सागर ! संसार । नौका मैं जल यदि भरें, तो डूबै मझधार ॥२॥
सागर ! कड़वी बात सुण, जो दें मधुर जवाब । ठंडी पाणी उगलती, दै आगी नै दाब ||३||
अति-आरामी, आलसी, अभिमानी, आजाद । लंपट, लोलुप, लालची, सागर ! बो के साध ? ॥४॥
- कांण सागर ! नहीं, खांण पांण ही ध्यान । नहीं बखाण-बाणी समझ, साध असाध समान ॥ ५ ॥
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पञ्चक बत्तीसी ४३
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