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४२ आसीस
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आत्मालोचन
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निरखे तो खुदरा निरख दो क्षण दुर्गुण दोष । सागर ! तूं पर - गुण परख, आगम रो उद्घोष ॥ १ ॥
औरां री आलोचना, पागल पुरुष प्रलाप । सागर ! रोही रो रुदन, पाप अनाप-सनाप ॥ २॥
निज अवगुण निरखे नहीं, आखै पर का भेद | चाली सागर ! चालणी, खेद बतावण छेद ॥ ३ ॥
सागर ! काच रु केमरो, दोनूं परख प्रबुद्ध । उलटो अंकन फिल्म मैं, शीसो सुध रो शुद्ध ॥४॥
दूजां नै देख्यां दकी, सरै न गरज लिगार । अन्तर की आलोचना, सागर! प्रवचन -सार ॥५॥
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