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२७ पौरस बढ़ा
कष्ट पड्यां कायम रहै, साहसीक निर्भीक । सागर ! सिसकै सिटलिया, झांक रांक दै रीक ॥१॥
'चम्पक' हिमगिरिपर चढ़े, सागर-तल लै नाप । चन्द्र-लोक जा ऊतरे, साहस रो बल साफ ।।२।।
सहनशीलता री हुवै, हद जद सागर ! हार । नारद, नमे न नागड़ा, नाग बिना फुकार ॥३॥
कह सागर ! पौरुष-कथा, सुणतां चढ़े उमंग । रंग देख बदल्यां करै, ज्यूं खरबूजो रंग ॥४॥
शब्द असंभव कोश मै, साले सागर ! साल । कर्म-शील काढ्यां करै, पाणी फोड़ पताल ।।
पञ्चक बत्तीसी ४१
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