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आसीस
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पाणी - परख
साहूकारी री सदा, रेसी अविचल रेख । चोड़े चींधी चोर कै, शिर पर सागर ! देख ॥१॥
ओछी पत ओछी अकल, अवसर रा अणजाण । अणघड़ अनुभवहीण रा, अ सागर ! अलाण || २ ||
गरमी मैं सूखै नदी, बरस्यां आवै बाढ़ | सागर ! बन्धो बांधकर, सीमित नहरां काढ़ || ३ ||
सिंचन चिंतन स्यूं सरस, सागर ! जीवन खेत । चासे बिजली च्यानणो, सूख न पावै रेत ||४||
पाणी स्यूं सागर ! परख, सूरा, कूआ, सेण । रद पाणी उत पर्छ, मोती, माणस, नेण ॥५॥
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