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२५ तुकम-तासीर
दुर्जन तजै न दुष्टता सज्जन सजन स्वभाव । सागर ! तो सूखे नहीं, तलियो देत तलाव ॥ १ ॥
तजै 'तुकम तासीर' कद, सोबत सके न छूह' | सागर ! शाहजादो रमै, महिलां मैं धिग् धूंह || २ ||
सागर ! घर परिकर असर, आयां सरसी अन्त । कह, कद कड़वी - बेल पर, मीठो फल मुलकन्त ॥ ३॥
सागर ! बढ़ा न बीसरे, बड़पण झोंका झेल । दर मैं भी देखें नहीं, गज गंडक री गेल || ४ ||
असली रै औलाद की, हुवै न सागर ! होड । बोड़ां री घरघोडिया, खुड़ा सकेँ कद खोड़ ||५||
१. तुकम-ए-तासीर, सोवत-ए-असर ।
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पञ्चक बत्तीसी ३६
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