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२४ स्नेह-राग परिचय
विषय बधै विष बेल ज्यू, परचो मोटो पाप । सागर ! नहिं आवै सुधी!, धूलो खांयां धाप ॥१॥
पूलो हाख्यां पर जलै, छेड्यां ऊठे झाल । रंग-राग री आग रो, सागर! जग-जंजाल ।।२।।
स्नेह-राग सागर ! सबल, भंवर भयंकर भार । भूल-भुलैयो भव-भ्रमण, बुद्धि बिगाड़ विकार ॥३॥
सागर ! परचै मैं पड़यां, हीये रहै न होश । चंचल चित चकरी चढ़े, दै ओरां नै दोष ॥४॥
हीये फूट नै मिलै, भाग फुट रो जोग । सागर ! थाइसेस-सो, (ओ) स्नेह-राग रो रोग ।।५।।
३८ आसीस
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