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आज रा अगुवा
अगुवा सागर ! आज रा, केसूला रा फूल । दीसत दीस फूटरा, किन्तु मूल मै भूल ॥१॥
अगुवा सागर ! आकड़ा, फूल देख मत फूल । आम्बा-सा अकडोडिया, भीतर तूल फिजूल ॥२॥ अधिक धनी है आकड़ो, सागर! मत लै नाम । पान फूल फल है घणा, पर के आवै काम? ॥३॥
ऊपरले आलोक मै, अकल उलझगी आज । सागर ! भेद भविष्य रो, समझ नहीं समाज ॥४॥
लेक्चर झाड़े, घर भरै, नेता नीत बिगाड़ । सागर ! यूं कद हो सक, सही समाज-सुधार ॥५॥
पञ्चक बत्तीसी ३३
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