________________
३० आसीस
シ
१६
घुल-मिल' र देख
दूध-खांड की ज्यूं दकी ! रहिजे एकामेक । घुल-मिल सागर ! सैण स्यूं, चलै न हंस-विवेक ॥ १ ॥
सागर ! सज्जन बण सदा, तरल दूध तुच्छ नीर ने भी तुरत, आप
रै तुल्य । अपणो मुल्य ॥ २॥
aण मित्र तो तूं बणी, सागर ! सलिल सुजाण । बलै जलै पेहली स्वयं, पय ने पड़े न ताण ॥ ३ ॥
Jain Education International
जल जलता ही उछलकर, सागर ! उफण दूध । भाई रे दुख में दुखी, पड़े आग मै कूद ॥४॥
छांटो सागर ! छिडकतां, हियो हुज्यावै हेम । भाई-भाई मै हुवै, पय-पाणी सो प्रेम ॥ ५ ॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org