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सज्जनता रो रूप
सागर ! सज्जन आपरो, देसी हित री सीख । ऊपर स्यूं करड़ो मगर, भीतर मीठो ईख ॥१॥ नीको कड़वो नीमड़ो, सागर ! सन्त सुजाण । खोट काढ़, व्रण नै भरै, जाण कोइयक जाण ।।२।। सागर ! कर यदि कर सके, तूं चोखां री होड । धोलां मीठा दूध-सा, पक्यां नरम बेजोड़ ॥३॥ त्यागै प्राण पतंगियो, पण नहीं तोड़े प्रीत। स्याणा सागर ! दै सलाह, मीत ! प्रीत री रीत ॥४॥
सागर ! सो चोटां सहै, सोनो, सज्जन, सूर।। अड़ताइ अरडाटो करै, कुत्तो, कांसो, क्रूर ॥५॥
पञ्चक बत्तीसी २६
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