________________
१४
महानता रो गेलो
कष्ट पड्यां सागर ! कदे, मत करजे मुख म्लान । चोटां खमण स्यूं चतुर !, मानव बणे महान ॥१॥ बड़ो, बड़ो दोरो बणे, बड़ो बणण री पीक । तो गम खा, गंभीर बण, लोप न सागर ! लीक ॥२॥
तपणे री सागर ! तनै, करणी पड़सी पेल । सुध बणणो सो टंच रो, सोनो है के स्हेल ॥३॥ तणी न ऊंचो ताड़-सो, पंखी रहै न पास।। फल नहिं आवै हाथ मै, सागर! सोहरै सास ॥४॥ सागर ! सागर सारिसो, गहरो रही गंभीर । सीमा में बरती सदा, नदियां रो ज्यूं नीर ॥५॥
२८ आसीस :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org