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साहस मत खो
सागर ! दुख समचित सहै, हिम्मतवान सोग्यो- संताप्यो रहे, निर्भाग्यां
रो
सोक नाश श्रुत रो करें, सोक शरीर सागर ! धन, धीरज, धरम, देवै
सागर ! तप-जप-विधि कठै, सम, श्रम, समझ समाधि । रात दिवस लागी जठ, सोक, सोक-सी व्याधि ॥२॥
सागर ! सूरज री हुवै, सदा तो क्यूं तूं दुमणो बणे, दुख में
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हमेश ।
बिगाड़ | सोक उजाड़ ||३||
सागर ! समचित सहन कर, करड़ी झाट झेरण री सह्यां,
निकलै
झट
शेष ॥ १ ॥
अवस्था तीन । दरदी-दीन ॥४॥
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सीख पुनीत । नवनीत ||५||
पञ्चक बत्तीसी २७
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