________________
११
मित्र ढूंढ़
सागर ! सम्पत मै सुखद, हाजर मित्र हजार। बोलण विग्रह-विपद मै, साथी कुण है त्यार ॥१॥
सागर ! सुकृत साथ है, होसी जो कुछ होण । सुख मै साथी सेकड़ा, दुख मै साथी कोण ॥२।।
विद्या-विनय-विवेक है, थारा साथी तीन । सागर ! करजे साधना, तूं होकर तल्लीन ॥३॥ अमर-बेल सागर ! अमर, साथी नै नहिं खैर । पसरै जिणरी डाल पर, विण स्यूं पोखै वैर ॥४॥
सागर ! सांप्रत समझल, मित्र-मित्र मै फेर । दुर्लभ हीरो दीखणो, कांकर ढेरमढेर ॥५॥
पञ्चक बत्तीसी २५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org