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सुख रो संकेत
सागर ! सुख संसार सब, थाक्यो सगलै जो सुख चावै ढूंढ़णो, (तो) मन ढूंढ़े मै
संकट में संतोष यदि, राख सकें तो राख । सागर ! सुख रो स्वाद तूं, चाख सके तो चाख ॥ २॥
ढूंढ़ ।
ढूंढ़ ||१||
सागर ! दुख अनुराग है, सुख है ममता - त्याग | राग - त्याग, वैराग बिन, बुझे न जल री आग ||३||
धन मैं सुख री धारणा, सागर ! धारै लोक । पुद्गल सुख है पांवला, असली सुख संतोक ||४||
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सुख मात्रा सापेक्ष है, अति मात्र अतिरेक । सागर ! समता सीखलै, दुख तूं सुख देख ||५||
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पञ्चक बत्तीसी २३
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