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मान-मनवार
बिना मान-मनवार कै, रहण मै कै सार ?। सागर ! हाथ्यां पर लदै, जन इन्धन रो भार ॥१॥
भंवरा ! आदर-भाव बिन, डाल-डाल मत डोल । सागर ! थारो है सही, अपणो भी कुछ मोल ॥२॥
आदर री सागर ! अकथ, लगै राबड़ी स्वाद। बिना लूंण पकवान भी, बणज्यावै बे-स्वाद ॥३॥ सागर ! सूखो सोगरो, स्ववश रो सुखकार । ठोल्या खा पकवान भी, है जीमण मै हार ॥४॥
आदर और नै दियां, मिलसी सागर ! मान । कदे मिनख भूल्यां कर?, अवसर रो अहसान ॥५॥
२२ आसीस
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