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२०
आसीस
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संगत री रंगत
ओछां रो आछो नहीं, सागर ! अति सम्पर्क | ज्यूं फूटी नावा करें, गहरे पाणी गर्क ॥ १ ॥
ओछां री संगत अरे !, मारै मानव मोल । सागर ! साम्प्रत स्वर्ण नै, दै चिरम्यां स्यूं तोल ||२||
सागर ! संगत रो असर परख देख प्रत्यक्ष । अमर-बेल आसंग स्यूं, बलै समूचो वृक्ष ॥३॥
अपछन्दा ओल्है करें, आमी - सामी बात | अवगुण रै आरंभ री, सागर! आ शुरुआत ||४||
कायर संगत कायरी, जोशीलां संग जोश । सागर ! आवै संगत स्यूं, अटकल, अकल रु दोष ||५||
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