________________
भणणे सागै गुण
कोरी विद्या स्यं कदे, मिनख न बणे महान । रोहीड़े रै फूल रो, सागर ! के सम्मान ? ॥१॥
सागर ! परखीजै सदा, विद्या सह व्यवहार । ढोर किस्यो ढोवै नहीं, भारी पुस्तक भार ॥२॥
शिक्षा मै शोभै नहीं, अकड़ाई अविवेक । सागर ! स्वर्णिम-थाल मै, ज्यूं रीरी री रेख ॥३॥
सागर ! सीख्यो सैकडां, अनुपम कला उदार। जीवन री ज्योति जगे, तो सीख्येड़ो सार ॥४॥
सागर ! इण संसार मै, पढ्यो-लिख्यो भी फूड़। जो नहिं जाणे बोलणो (तो) सब सीख्येड़ो धूड़ ॥५॥
पञ्चक बत्तीसी १६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org