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समझदारो रो सार
बोली बोलीजे इसी, पकड़न कोई पाय । सागर ! समझू समझलै, लगै जग्यांसर जाय ॥१॥
सागर ! सीखी बोलणो, जाणे जाणणहार । माखण विरला नै मिलै, छाछ पिवै संसार ॥२॥
समझू समझ स्वल्प मै, सागर ! साची रेस । मूरख मगजपची करै, पूरी पड़े न पेस ।।३।।
अणसमझआवेश मै, बणज्यावै बाचाल । सागर! सुमधुर शान्ति रा, सुन्दर फल संभाल ॥४॥
सागर ! शोभै है सदा, बगत-बगत री बात । बिना बगत लागै बुरो, शशि सूरज रै साथ ॥५॥
१८ आसीस
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