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पेली तोल, पछे बोल
सागर ! पेहली सोचकर, फेर बोलणो बोल । सारो जग सज्जन बण, तीखो बधसी तोल ॥१॥ बोली-बोली मै खिलै महाभारत सो खेल । सागर ! बाणी स्यूं समझ, कितो तिलां मै तेल ॥२॥
कोई स्यूं करणी नहीं, बिना जरूरत बात । कांण-कायदो खास है, सागर ! अपणे हाथ ।।३।।
बात, बिना भाजन बिना, कहतां हुवै कदर्थ । सागर ! पेहली सोचजे, विग्रह बधै न व्यर्थ ॥४॥
शब्द-शब्द सागर ! सदा, बोल तराजू तोल । जो चाबी तालो जड़े, बा ही देवै खोल ॥५॥
पञ्चक बत्तीसी १७
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