________________
१६ आसीस
२
भूल मत
सागर ! सद्गुरु रो सदा, अकथनीय उपकार । साम्प्रत माटी रो सुघड़, कुंभ करै कुंभार ॥ १ ॥
शिव - दाता, त्राता सुगुरु, मात-तात, गुरु- भ्रात । सद्गुरु से सागर सतत, शरण राख दिन-रात ॥ २ ॥
करै सारणा-वारणा, नहि मारण दै मेख | सद्गुरु सिख समुदाय की, सागर ! राखै रेख ||३||
सुमन - सुरभि, गुरु-शिष्य रो, देह-प्राण सम्बन्ध | सागर ! सद्गुरु नावड़ी, ओ संसार समन्द || ४ ||
आसंगो आछो नहीं, अटल राख गुरु-आश । बंधन सागर ! बाथ मैं, ओ असीम आकाश ||५|
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org