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सीख
सागर ! संयम सांतरो, सुखे पालजे शान्त । संघ, संघपति शरण में, रह निश्चिन्त नितान्त ॥ १ ॥
शासन - सागर मै सदा, कर सागर ! किल्लोल । रत्नागर रमणीक हद, हीये री हिल्लोल ॥२॥
शासन उमग-जला सुखद, खिणभर खटै न खोट । आचारी नै है अठै, अक्षय सागर ! ओट ॥३॥
सागर ! भैक्षव-संघ रो, है ऊंचो आदर्श | अडिग राखजे आसता, हरदम चढ़ते हर्ष ॥ ४ ॥
सागर ! सुर-तरु संघ स्यूं, पूरण राखी प्रेम | विज्ञ ! विनय-व्यवहार-नत, निमल निभाजे नेम ||५||
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पञ्चक बत्तीसी
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