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एक कोल
संघ रै इकलास की शानी कठेइ है नहीं। साख तेरापंथ री छानी कठैइ है नहीं। आदि म्हारो संघ है अरु अन्त म्हारो संघ है। संघ स्यूं बधकर नहीं कोई आथ इ संसार मै ॥१॥
के करूं मै भला बी बैकूट रो। जठे सुख दुख रो कोई साथी नहीं। संघ है सोह क्यूं जले घी रा दिया। जीव स्यूं बत्ती दकी है संघ म्हारै वासते ।।२।।
रंज मै भी, खुशी मै भी, गमी मै अणगमी मै। संघ म्हारो और मै हूं संघ रो॥ कदे कुर्वाणी नहीं सौदो करै। दियां जा बलिदान अपण ढंग रो॥३॥
संघ रै खातर निछावर कालजो। मनै बदलै मै नहीं की मांगणो॥ आग स्यूं मुंह भुसलद्यो पण स्नेह देकर। सदा थांनै दियो देसी च्यानणो॥४॥
एक दूजे री उतरती जो करै, जलै ईर्ष्या द्वेष मच्छर आड मै। जठे छोटे-बड़े रो नहिं कायदो, खड्यो है बो संघ साव उजाड़ मै॥ हाथ खावै हाथ नै बो घर किस्यो? आबरू के राखणी आसान है। लोग ताल्यां बजावै, खिल-खिल हंसे, संघ बो किरकेट रो मैदान है॥५॥
१० आसीस
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