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कुण दोसी निर्दोसी
काच फूटग्यो, रोलो मचग्यो, दिल टूट्यो आवाज न आई, ना कुछ-सो मन-भेद पड्यो बस दूर हुआ मां-जाया भाई। गेहणो बांट्यो, जग्यां बांटली, भींत आंगणै मै खिंचवाई, पेठ गमाई, जमीं जमाई, पीढ़यां री दूकान उठाई। हाथी निकल्यो, अड़ी पूंछड़ी कलस्यै री रह गई लड़ाई, खुदी दिराण्यां-जेठाण्यां मै हिन्द महासागर-सी खाई।
सागै पल्या, रम्या सागै ही, सागै सीख्या, जीम्या सागै. बातां करता लोग-लुगायां, 'जोड़ राम-लिछमण-सी लागै'। आज हुयो के ? भाई नै भाई देख्यो भी नहीं सुहावै, ओरां आगै एक दूसरै रा ओगण-गिणगत नित गावै । 'चम्पक' घर मै बड़ी दुश्मणी, बणग्या जिगरी दोस्त पड़ोसी, पड़ग्यो लोही पाणी स्यूं भी पतलो, कुण दोसी निर्दोसी ? आंण-टांणै, इं-घर बी-घर, आंण-जांण री आंट अडाई । ना कुछ-सो मन-भेद पड्यो बस दूर हुया मां-जाया भाई, काच टूटग्यो, रोलो मचग्यो, दिल टूट्यो आवाज न आई ।
असल बात
है
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