SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बफादारी संघ री बै के निभासी। दो मिनट भी बैठ सुख-दुख नहिं कहै जो नहिं सूर्ण ॥ संघ चादर नै भला बै के बधासी। मियां धागा प्रेम का जो नहिं चुण, जो नहिं बुण ॥६॥ होड़ सागर री कदेइ चलू भर पाणी करै? बूंद-बूंद टपक-टपक चम्पक सदा अंजलि झरै॥ बूंद-बूंद रली चली रसधार सागर बण गयो। उछलकर बारै पड्यो अस्तित्व पाणी खो दियो ॥७॥ एकलो तो हुवै आखिर एकलो ही। संघ अपरम्पार लहरातो समन्दर ।। समन्दर मै बूंद रो भी मोल है। कोल, आपां रवां एकामेक बण श्रीसंघ रा ॥८॥ मिल्या आपां एक ठामे संघ री सगती बणी। प्रेम ज्योति बुझ्या, मेहफिल मै रहै कद रोशणी ॥६॥ तूं कर्यां जा बेधड़क निष्काम सेवा। समर्पण निरफल कदे नहिं जायला॥ (भले) नहिं सुहावै नांव दीयै नै लियो। पण पतंग्यो प्राण भेंट चढायला ।। रात बीत्यां पछै सूरज ऊगसी। राख थ्यावस, भूलज्या सत्कार नै ।। जीवतां नै सदा गाल्यां ही पड़े है। मर्या, धोक्यां करै जग जुंझार नै ॥१०॥ असल बात ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy