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________________ ५७ Jain Education International पक्षीय उफाण महावीर जयन्ती समारोह में सम्मिलित होने वाले यात्रियों का आगमन प्रारम्भ हो गया है । निवास आदि के लिए स्थान जयपुर शहर देखते हुए तो ठीक ही है पर मच्छर और गंदगी से भी अधिक परेशानी है संकीर्णता की। अभी से यात्रीगण उकता गये हैं। यहां की आवास व्यवस्था समिति ने प्रति व्यक्ति एक रुपया रोज किराया लगाया है। एक-एक कमरे में पचास-पचास आदमी ठहरे हैं । आखिर शहर है । स्थान की दिक्कतें तो हैं ही। शहरों में स्थान खाली मिलते कहां है ? आने वाला हर यात्री भाईजी महाराज के पास पहुंचता है। सुख-दुःख की शिकायत का महकमा भी तो यही है । हम सुन रहे हैं, श्री भाईजी महाराज यात्रियों को आश्वासन देते हैं । शहरी कठिनाइयां बताते हैं । संयम से काम लेने को कहते हैं, और समझाते हैं-भाई ! हमारा तो मार्ग ही संकडाई का है । आज कुछ लोग सबरे - सबरे आये और कहने लगे - गरीबनवाज ! आपके राज में जयपुर वालों ने लूट मचा रखी है । व्यवस्था के नाम पर व्यापार खोल लिया है । वे कमरे, जहां हमें उतारा गया है, तीन-तीन रुपया रोज पर किराये लिए गये हैं और हमसे पचास-पचास, चालीस-चालीस और किसी-किसी से तीसतीस लिये जा रहे हैं । यह तो सरासर अन्याय है । यदि इतनी ही क्षमता नहीं थी तो ये क्यों लाये आचार्य श्री को ? भाईजी महाराज ! ऊपर से ये लोग हमें शहरी धौंस और दिखाते हैं और कहते हैं— क्यों आये आप ? किसने पीले चावल दिये थे । दुःख भरे शब्दों में, जो आया, वे बोलते गये । श्री भाईजी महाराज ने फरमाया- भाई ! यात्रा की खिन्नता के बाद यहां आते ही परेशानी हो तो मन में आये बिना नहीं रहती । वे भी तुम्हारे ही भाई हैं । व्यवस्था करने वाले विचार कर रहे हैं। जरा तुम भी धीरज से काम लो । धीरेधीरे जमते - जमते सब व्यवस्थाएं जमा करती हैं । ३३२ आसीस For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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