SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जो देणे जोगो हवै, उणनै ही बतलावै । 'चम्पक' मांगण नै भलां ! कुण किणरै घर जावै ॥' समय की चोट लगी। सुनते ही उसकी आंखें नम हो गयीं। वह नीचे गया। कार्यालय में जा माफी के साथ पुनः तशरीफ लाने का आमंत्रण दिया । लोग जाना नहीं चाहते थे। भाईजी महाराज ने द्वेष-रोस को प्रेम में बदलने का सुझाव दिया। लोग गए। उसने जो आतिथ्य किया, जाने वाले कल की बात भूल गए। चेक-बुक सामने धर दिया-जो मरजी हो लिख लो। जो प्रेम उभरा। बात लेने-देने की नहीं होती । प्रेम के सामने लेन-देन छोटा पड़ता है। पुनः भाई-भाई जुड़ गए। तोड़ना आसान है पर जोड़ने में तप चाहिए, प्रभाव चाहिए । श्री भाईजी महाराज को टूटते हुए दिलों को जोड़ना आता था। वे समाज में प्रेम की एक सशक्त कड़ी थे। ३२२ आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy