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________________ तब का हमारा साथ है सुजानगढ़ में भाईजी महाराज के तकलीफ हुई । डाक्टर व्यासजी का इलाज चला। डॉक्टरों को हार्ट पर दबाव का बहम था । इ० सी० जी० भी इसी बहम की पुष्टि करता था। हंस महल में विश्राम किया गया। सरदार शहर के लोग दर्शन करने आये। उन्होंने भाइजी महाराज को सरदार शहर पधारने की प्रार्थना की। विशेषकर वाणिदा-वास वालों का जोर इसलिए था क्योंकि उनके वहां एक संथारा चल रहा था। सूरजमल जी दुगड़ की बहू धर्म-परायण महिला थीं । उनका जीवन ही धर्म-ध्यान, सामायिक संवर साधु-सन्तों की सेवा और स्वाध्याय-चिंतन में सफल हुआ। उनकी वंदना करने की विधि भी निराली थी। लाखों-लाखों श्रावकों में उनकी वन्दना नहीं मिलती। वे जमे-जमाये मुंह लगे पाठ । कृतज्ञता और लोमहर्षक उल्लास । भाईजी महाराज उन्हें 'मद् का बड़ियाजी' कहकर जीकारा देते। उन्होंने आचार्यप्रवर के श्रीमुख से अनशन पचखा। उनकी आखिरी अभिलाषा थी-भाईजी महाराज के चरणों में मेरा अनशन पूरा हो (संथारा-सीझे) हनुमानमल जी दुगड़ आये, अर्ज की और भाईजी महाराज ने सरदारशहर पधारने की स्वीकृति दे दी। डॉक्टर अभी विश्राम देना चाहते थे । इच्छा कम-कम होते हुए भी डॉक्टर व्यासजी ने विहार की हां भरी। डॉक्टर व्यासजी भाईजी महाराज के परम भक्त हैं। समर्पित डॉक्टर मुनिश्री का वचन टाल नहीं सकते थे। अनचाहे हां भरनी पड़ी। सुजानगढ़ से विहार हुआ। सरदारशहर की सहल-समिति ने दोनों ओर की (लाने और पहुंचाने की) सेवा की। इधर वे भर गरमी के दिन, उधर सहल-समिति के अमीर सदस्य । किसी तरह मेल नहीं था। ऐसे दिनों में कोई भी घर से बाहर निकलना नहीं चाहता, वहां वे अमीरजादे छोटे-छोटे गावड़ियों के झूपों में दिन काटते, भाईजी महाराज के लिए। सहल-समिति का नामकरण भी भाईजी महाराज का अपना किया हुआ था । यों तो संस्मरण ३१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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