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________________ ३० चहके का चक्कर प्रातःकाल ज्यों ही हम दिल्ली की ओर बढ़े, देखा सड़क अवरुद्ध है। सैकड़ों-सैकड़ों वृक्ष इस तरह छिन्न-भिन्न हुए पड़े हैं मानो कोई प्रलय का झोंका आया हो। पांच मील तक का रास्ता वृक्षों की टूटी डालियों ने रोक रखा है। जिधर देखो उधर वृक्षों का बेहाल है। कई-कई वृक्ष तो एकदम उलटे हो गये हैं, जड़ें ऊपर हैं और टहनियां नीचे। रात भर से दिल्ली रोहतक रोड ठप्प है। न कोई कार आ-जा सकती है और न कोई ट्रक । सुनसान वीरान-सी सड़क पर हम कभी चढ़ते हैं, कभी उतरते एक पीपल के पेड़ को उलटा पड़ा देख श्री भाईजी महाराज के पांव बरबस थम गये। चिन्तन की मुद्रा में कुछ क्षण रुककर मुनिश्री ने फरमाया जब चहका आता है ऐसा ही होता है। कौन उथल जाए, कौन खड़ा रहे, यह निर्णय करना कठिन है। उसी का खड़ा रहना, खड़ा रहना है, जो तूफानी झोंके में अडिग रहता है। कितने ऐसे आदमी हैं जो झोले में न डोले । भाई ! यह तो चक्कर ही ऐसा है-देखो ! इतना बड़ा देववृक्ष, जिसमें कोई कांटा नहीं, बांक नहीं, बुराई नहीं, कड़वाहट नहीं, शांत, कोमल, सुहावना, सर्वप्रिय और इतना विस्तृत । कोई चाहे कितना भी बड़ा हो, कितना भी विस्तृत हो, विद्वान हो, कितना ही लोकप्रिय हो, जिसने जड़ें छोड़ दो, वह उथल जाएगा। संघ धरती है। संघ में जो जितना गहरा और मजबूती से गड़ा हुआ है। वही खड़ा रहेगा। वातावरण के चहके में जिसके पांव उखड़ गए, वह गया समझो। बातूल का सहना कोई के वश की बात नहीं है जो उखड़ जाता है, उसकी यही गति होती है। 'चम्पक चहकै रो चकर, सह नहि सके हरेक । - टहण्यां तो नीचे टिकी ऊपर जड्यां उवेख ॥' संस्मरण २४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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