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में मुन्ना पुनः आया । कोठारी जी के पांव छूकर कहने लगा- बाबाजी ! नमस्ते ।
हमीरमलजी बोले- 'मुन्ना ! मरवा देता न तेरे रहते यह हाल ?' मुन्ने ने माफी मांगते हुए कहा - 'बाबाजी ! आपका दिनमान सिकन्दर था । वरना आज हम नीमतलाघाट (कलकत्ता का श्मशान) ही मिलते। बाबाजी ! जो कुछ हुआ भूल जाइये ।'
वह सायंकाल अपने साथी को लेकर आया । माफी मंगवाकर हम सभी बच्चों की पहचान करवायी । भाईजी महाराज फरमाया करते थे । उस दिन के बाद मेरा मन बदल गया । जीवन की नश्वरता का एक बोध हुआ ।
मैं खोया-खोया-सा उदास उदास रहने लगा । मेरी आत्मा किसी अचित्य के चिन्तन की गहराई में मन ही मन कुछ नया निर्णय कर चुकी थी ।
चैनरूपजी री घटी, घटना घड़गी इतिहास | इं अनित्य संसार स्यूं ' चम्पक' बण्यो उदास ॥
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संस्मरण
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