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________________ आत्माभिमुख तब एक सामान्य-सी घटना भी व्यक्ति के लिए विशेष बोधक बन जाती है जब जन्मांतर के संस्कार परिपाक लेकर उभरते हैं । मन बदल जाता है । एक घटनाप्रसंग पर भाईजी महाराज के साथ भी ऐसा ही हुआ। संसार का प्रत्येक पदार्थ उन्हें हिलता-सा नजर आने लगा। इसी चिन्तन ने उन्हें आत्मदर्शी बना दिया । __ कोठारी चैनरूप जी तकादे गये थे। उनके साथ बारदानेवाला जमादार था। सामने एक गुण्डा मिला। पड़ोस से निकलते हुए उसने चैनरूपजी के कन्धे पर टक्कर मारी। चनरूपजी शरीर से मजबूत काठी वाले थे। थे भी साहसी, बहादुर । गुंडा पुनः लौटा । उसने तकादे के पैसों वाली लाल थैली छीननी चाही । झपट मारी। चैनरूप के बगल में दबी थैली जब उसके हाथ न लगी तो उसने उनके दाहिने कन्धे पर छुरा मारा। सावधान चैनरूपजी उसके वार को नाकाम कर गए । वे बाल-बाल बचे । उसने सीने पर हाथ मारा । चैनरूप ने दूसरे हाथ से उसे रोक दिया। वह भाग छूटा। भीड़ इकट्ठी हो गयी। इस हाथापायी में चैनरूपी के कोट का गिन्नी वाला बोताम (बटन) टूटकर कहीं गिर पड़ा । जमादार ने ढूंढा वह भी मिल गया । घर आये। किसी से कुछ नहीं कहा । सो गए। प्रातः मुन्ना सनावत (गुंडों का सरदार) आया। चौकीदार बहादुर सिंह से बोला-बाबू का क्या हाल है ? ठीक-ठाक तो है चैतू बाबू ? बहादुर सिंह ऊपर आया । सब कुछ सामान्य था । मुन्ना चला गया। __ चैनरूपजी उठे, नहाए । कन्धे पर चरमराहट लगा । विशेष ध्यान नहीं दिया, कपड़े पहनने लगे। जाकेट फटी हुई थी। कोट भी फटा था। कमीज संभाला, बनियान देखा । अब गया ध्यान कन्धे पर, छुरे की नोक का जरा-सा निशान कन्धे पर था। कोठारी हमीरमल जी को पता चला । रात की सारी घटना सुनी। दुपहरी २२० आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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