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________________ जब ज्यादा तंग करता तो गणपत महाराज सागर को आवाज देते और वह भला आदमी तिलचटा उठा लाता । तिलचटा देखते ही मैं मैदान छोड़ भाग खड़ा होता। कई बार सागर मुझे सुख से खाना भी नहीं खाने देता। ज्योंही यह आवाज देता 'चम्पू भाईजी ! तिलचटो' और मेरा राम थाली फेंक दौड़ पड़ता। __ भय ही तो आदमी को मारता है। कई बार मैं तिलचटे के बहम में रात को नींद में ही धुधा पड़ता। मामाजी बहुत समझाते, पर भय नहीं निकला सो आज तक नहीं निकला। वहां मैं रह-रहकर याद करता बहन लाडांजी को । जब मैं चुहिया पकड़कर उन्हें डराता था तब उनमें क्या बीतती होगी? जो डराता है, वह डरता है। जो मारता है, वह मरता है । चम्पा ! वह औरों के लिए भी मत कर, जो अपने को नहीं सुहाता । जब मैं कलकत्ता से देश आया, मेरी चुहिया वाली आदत छूट गयी थी। मेरी आत्मा रह-रहकर कहती 'अपणो-सो पर-दुख हुवै, जाण्यो पहलां-पेल । तिलचटे स्यूं छूटगी, लाडांजी की गेल ॥' संस्मरण २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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