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________________ कआं डाकने की शर्त उमर का भी एक अलग रंग है। बच्चे से किशोर होते ही उसकी गतिविधि मोड़ लेने लगती है । वह गुण-दोष को इतना महत्त्व नहीं देता, जितना मनचाही कर लेने को देता है। ज्यों-ज्यों वह बड़ा होता है, उसके शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक और बौद्धिक विकास भी बढ़ता है । खान-पान, रहन-सहन और खेल-कूद के साथ बोलचाल की भाषा में विस्तार आता है। ____ अभिभावक उसे थोड़ी-सी छूट दे दें तो वह निश्चित भाव से अभिवृद्धि करता है, छूट के साथ थोड़ा-सा स्नेह प्यार भी मिलता रहे तो उसकी विकास-ग्रन्थियां और अधिक तेजी से रस-स्राव करने लगती हैं। कुंठित वातावरण ग्रंथि-विकास में अवरोध पैदा करता है, ग्रंथि-स्राव कभी-कभी रुक भी जाता है। उस उमर में किशोर कितना दुस्साहसी हो जाता है, एक अनुभव सुनाते हुए श्री भाईजी महाराज ने बताया दादा राजरूपजी का हाथ बहुत उदार था। रईसी रहन-सहन, लाड-बाई का विवाह, और आले-दोले घर-खर्च से आर्थिक स्थिति डगमगा गई। दादाजी के देहान्त के बाद उनके ओसर ने कर्जदारी बढ़ा दी। पिता झूमरमल जी शरमालू थे। इज्जत के प्रश्न ने उनको चिन्ताग्रस्त बना दिया। अब क्या होगा? इसी सोच में वे बीमार हए और वि० सं० १९७६ जेठ शुक्ला १२ को उन्होंने प्राण दे दिए । घरखर्च की चिन्ता, बड़ा परिवार, कर्जदारी और काम-धन्धा चौपट । भाई मोहनलालजी अकेले कमाऊ। __मैं उन दिनों १२ वर्ष का हो रहा था । मुझे भी घर की चिन्ता सताने लगी। मैं वि० सं० १९७७ में दिसावर गया । 'खुशालचन्द लिछमणदास' के यहां सिराजगंज (वर्तमात बंगलादेश) में काम सीखने लगा। वह भी एक लगन थी, छहसात महीनों में ही मैं एक दुकानदार के रूप में उभरा । प्रारम्भ से ही हिसाब-किताब २१० आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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