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चुपके से इधर-उधर देख, सुपारी ले जाता और उन्हें दे आता, जिन्होंने मुझे यह सब करना सिखाया था । वे शाबासी देते और मैं फूल जाता ।
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कई दिनों तक माताजी सोचती रहीं, भांड खाली हो रहा है, इतनी सुपारी तो खर्च नहीं होती, क्या बात है ? पर बहम भी करे तो किस पर ?
'चोर की दाढ़ी में तिनका' - एक दिन मैं पकड़ा गया । सुपारियां लेकर दौड़ रहा था । माताजी रसोई घर से बाहर निकलीं। मैं घबराया । एक सुपारी का टुकड़ा मेरी मुट्ठी में से नीचे गिरा । बस, फिर क्या था, रंगे हाथों चोर पकड़ा गया। एक चनपट पड़ी। हाथ पकड़कर मां मुझे ओरे में ले गयीं। मैंने सच-सच बता दिया ।
सब कुछ साफ-साफ पता लगने के बाद भी मांजी की गंभीरता ने उन्हें (जिनका नाम चोड़े हुआ था) दरसाया तक नहीं । हां, उस दिन के बाद मांजी हम बच्चों पर आंख अवश्य रखने लगीं, बच्चे कहां जाते हैं, कहां बैठते हैं । बस एक चनपट के मूल्य में मेरी चोरी की आदत छूट गयी ।
"किरचा रोज चुरावतो, लुक-छिप भर-भर मुट्ठी । ल्हापां मैं चनपट पड़ी 'चम्पक' चोरी छूटी ॥"
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सस्मरण
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