SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उन्होंने मुझे बुलाया / मनाया / कुसलाया/ समझाया / अपने पास बिठाकर खाना खिलाया । आज भी याद है, दादाजी ने उस दिन माताजी को कितना कड़ा उलाहना दिया था - शायद जरूरत से ज्यादा । कहते-कहते उन्होंने यहां तक कह दिया'खबरदार ! मेरे चम्पूं को आइन्दा कुछ कहने की जरूरत नहीं है । यह जो करे करने दो ।' माताजी जैसी विनीत महिला भी बिरली ही होगी । उन्हें अनुशासन का इतना ख्याल था, उस दिन के बाद मुझे कभी कुछ कहा हो, याद नहीं पड़ता । बच्चा समझ - अनसमझ में कौन-सा तूफान नहीं करता ? पर मांजी मेरी सभी हरकतें चाहे - अनचाहे स्मित हास्य में क्षम्य कर देती थीं । मैं आज सोचता हूं, मुझमें कितना आग्रह था । कुछ-कुछ अब भी है । बहुत ढला हूँ, पर फिर भी कह्यो न सदतो, रेंवतो ( म्हारो ) तोरो चढ्यो अकास | पड़ी प्रकृति जावै कियां ? सन्तां ! सोहरै सांस ॥' २०० आसीस. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy