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________________ मझ में कितना आग्रह था अति आग्रह मनो-क्लेश का कारण है। जब अहं फुफकारता है, आदमी कर्तव्याकर्तव्य भूल जाता है। व्यक्ति में आकांक्षाभीप्सित जिद्द होता है। मनोवांछित न हो तब तक चैन नहीं पड़ता। यह है, तो सही, पर आग्रह के पीछे सत्य का बल चाहिए। सत्य-बल का प्रयोग किसी को अनुचित दबाने, विवश करने के लिए नहीं, पुनचिन्तन के लिए हो । अनुशासन सत्याग्रह भी खतरनाक है। अपने अधिकारों की मांग व्यक्ति की जन्म-सिद्ध स्वतंत्रता है। पर उसमें विनय-विवेक और औचित्य का ख्याल अवश्य होना चाहिए। श्री भाईजी महाराज फरमाया करते-बचपन में मुझे कोई ओलंभा नहीं दे सकता था। घर या बाहर कोई कुछ कह देता तो दादाजी के पास शिकायत जाती और उसे ऐसी डांट पड़ती, वह भी याद रखता। __ मैं भी कम नहीं था। सब कहते, दादाजी ने इसे बिगाड़ दिया है। इतना सिर चढ़ा बच्चा, क्या काम का? पर मेरी तो वहां सब कुछ फबती थी। छह और भाइयो में मैंने जितनी मौज की/जिद्द चलाई/मनमानी की, क्या कोई करेगा? एक दिन मैं भोजन करने बैठा। माताजी ने मुझे थोड़ा-सा कड़ा डांटा । मैं उस दिन जिद्द पर था 'छींके पैदा आम दे' (छोंके पर रखे आम दो)। होता यों, बाजार से जब भी सब्जी-फल आते, छांटकर कुछ ऊपर धर देती। मैं चटोकड़ा था, दादाजी का मुंहलगा लाडला। ऐसी-वैसी चीज, जो सबके लिए हो, मैं क्यों खाऊं? छांटकर रखी गयी, अच्छी बढ़िया चीज खाऊंगा। मां प्रायः तो मुझे ऊपर रखी चीजें दे देती। पर उस दिन सभी बच्चे घर पर थे। मेरी जिद्द पूरा करना मां के लिए भी भारी था। मैं जब किसी तरह माना ही नहीं, तो माताजी ने तंग आकर थप्पड़ मार दिया। बस, फिर क्या था, मेरा मूड बिगड़ गया। मैं खाना छोड़, रोता हुआ बाहर चला गया। दादाजी दुलेछी (बैठक) में बैठे थे। संस्मरण १६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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