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अटकल-पटकल कुछ नहीं, कल बाबै रो नांव । जस जद मिलणे रो हुवै, (तो) 'चंपक' लागै दांव ।।५३॥
मांगी मांग करी घणी, पर नहिं मानी एक । पड्यो गुरां नै पिघलणो, रही भगत री टेक॥ भगत बड़ो संसार मैं, सब ली इक मति ठान । भगतां रै लारै झुक, देखो यूं भगवान ।। भगती मै सगती विविध-जुगती करै विनीत । रीत प्रीत री देखल्यो, हुई भगत री जीत ॥५४॥
गफलत स्यूं गोता पड़े, खेद खिन्न हो ज्याय । 'चंपक' जो पथ चूकज्या(बो)पग-पग पर पिछताय ॥५॥
मांगीलाल मतंग ज्यूं चाल, पूसरास रा पूत । बिन मतलब ही खांधा तोड़े, आ कुणसी आकूत ॥५६॥
गंगापुर स्यूं गंगापुर तक, दिवस इग्यारह लाग्या । पुर'र पहनो मिला, भाग अट्ठारह गांवां रा जाग्या।। अमावसी पधरावणो, एकम हुवै विहार । दो संवत गंगापुर फरस्या, चंपक जय-जयकार ।।५७।।
ओ कांटो कद स्यूं उग्यो, अरे ! फूटरा फूल । 'चंपक' होकर चतुर क्यूं, गई विधाता भूल ।।५।। कांटो पग रो काढ़ दे, चंपक चतुर चकोर । (पर) मन रो कांटो मांयलो, कहो कुण काढ़े कोर ॥५६॥
एक जग्यां दरडो पड़े (जद) ढिगलो दूजी ठोर । चंपक धन चोरी बिना, भेलो हुवै न भोर ।।६।।
ठीक नहीं है ठाकरां! बेजां ओ विसवास । अंत जिनावर जात रो, 'चंपक' के इकलास ।। चंपक के इकलास, क आछो नहिं आसंगो। बिना अरथ कोइ बगत, अचानक बधै अडंगो ।। खतरनाक खुंखार नै, रखणो घणो नजदीक । नीपीतां री प्रीत आ, नहीं ठाकरां! ठीक ॥६१॥
१६० आसीस
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