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पत्र-संख्या ३५
वैगलूर २३-१०-१९६६ २०२६ आसोजसुदी १३
दोहा
जयवन्तो शासन जबर, अति उन्नत इतिहास । आपां बडभागी इसो, पायो परम प्रकाश ॥१॥
एक-एक स्यूं ही अधिक, त्यागी तपसी सन्त । पर लाडांजी लेयग्या, बाजी तंतो तंत ॥२।।
सहनशीलता वेदनां, दोन्यां विजयी बणै सहिष्णुता, लाडों
रो रो
संघर्ष । उत्कर्ष ॥३॥
गांव-गांव रा जातरी, आव दर्शण हेत । मुख-मुख स्यूं आवाज इक, लाडां बड़ी सचेत ॥४॥
वीदासर वासी सुघड़, खूब निभावै फर्ज । सुण श्री चित परसन हुयो, (जद) करी चोरड्यो अर्ज ॥५॥
पसरै संघ प्रभावना, है सगलां रो काम । 'चम्पक' जी सोरो हुवै, जद सुणूं पूर्ण आराम ॥६॥ स्वास्थ्य लाभ लाडां वरो, करो संघ री सेव । (तो) 'चम्पक' दर्शण शीघ्र ही, देसी श्री गुरुदेव ॥७॥
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आसीस
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