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शासण भिक्षु स्वाम रो, मिलियो मोट भाग। तुलसी-सो नायक तरुण, 'चम्पक' चैन चिराग ॥६॥
कहै 'चम्पक' सुण बहन ! कद, टलै आखिरी टेम। प्राप्त करी पंडित-मरण, कुशल-खेम बण हेम ॥१०॥
रोग असाध्य शरीर मै, समता युत खुशहाल । 'चम्पक' शतमुख जन कहै, (आ) लाडां करै कमाल ॥११॥
सहनशीलता सजगता, रत स्वाध्याय पुनीत । आ अंतिम आराधना (थे) रह्या जमारो जीत ॥१२॥
पर माजी रो बांधज्यो, सुदृढ़ धीरज बांध । लाखीणी लाडां बणै, चमकै 'चम्पक' चांद ॥१३॥
आज्ञा अनुशासन-कुशल, वर वात्सल्य अगाध । सुगणी स्याणी सति करै, अब लाडां नै याद ॥१४॥
आस-पास होतो अगर, (तो) दिखलातो दो हाथ । 'चम्पक' सेवा साझ तो, बणा अनोखी बात ॥१५॥
अब लाडां! मोको निरख, खांप दिखाजे खंग। 'चम्पक' तूं मत चूकजे, राजपूतण ! रण-रंग ॥१६॥
१७६ आसीस
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